Monday, December 31, 2012

       स्नेह (कविता )
पहली कलम उठी है
मन कहता है कुछ लिख लू 
पर, बार -बार ये फिसल परती है 
पीछे की ओर 
केसे कहु 
हा -हा तुम्हारी हंसी से ही 
खिला है मेरा आज 
उसी कलरब में निकला है 
मनोहर कोपल 
हा ये सच है 
कि ओ छाप नहीं मिट सकती 
उस पर हैं अगणित 
नेह,धुप,मेह ,गंध ,अश्रु 
पर प्रिये 
इस आलोक में 
झलक रहा है 
कुसुम संसार 
आज यही सचाई है 
भूखे ,नंगे ,अश्रुपूरित
आखों में है 
मेरा आज।
मुझे नबयोबना
की देह गंध नहीं 
आगाज है 
मरू की इस 
मिटटी  का जो 
बिखेरेगा 
एक स्नेह 
प्रबर।।।
                      नब बर्ष मंगल हो ----------

                <मनोहर कुमार झा >
              01/01/13
             (हुनके लेल )