Thursday, December 29, 2011

आवास  (कबिता )
ना रहना  था साथ मेरे तो
काहे दिखाई  सपना
घोसले का
चली जाती चुप चाप
कहीं  बहुत दूर
थोरा सोचती
मेरे बारे में  भी
मेरे घोसले के
अंडे पर तरस  खाती
ना तोरती  उससे  भी
मुझसे नाता
जब ओ बहार  आता 
जी लेते अपने  घोसले
अपने उसी नबजात
के संग
बची रह जाती मेरी
लालसा
साथ होती तेरी  यादें
और तेरा हिस्सा
भले अधूरा होता
मेरा ओ घोसला
पर बच  जाता
हमारा सपना ,
और होती  एक सुकून
उसके साथ अपने
आवास  में  !!
:::'''      <कुसुम के लिये >
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-----मनोहर कुमार झा


 

क्लैमेक्स (कबिता)
वह कौन था
पता नहीं
सुबह आता
देर संध्या तक कुछ न कुछ काम
कर कर चला जाता था
बार दूबर था 
सबकी घुरकी सुनता
रासन की  पंक्ति से
टाइम कल की  लाइन तक
पुराने गुलाब की तरह
मरोरा  जाता
         सहसा ,
                वह जागता है
                कुछ ..........
                गोंघा कैरियर
               मूक कर देता है
पता नहीं
       फिर क्या हुआ
  फिल्म का
एक  गर्द गुबारा
गुम हो गया
एक जमी एक आसमा के लिये !
                            ---------मनोहर कुमार झा

Wednesday, December 28, 2011

आभास ( कबिता )


कौन कहता है प्यार दे जाओ
कौन कहता  है ये संसार दे जाओ
जरुरी तो नहीं की तुम भी प्यार करो
भटकू मयखाने में या कुरेदान में
बस तेरा आभास मिल जाए
कौन कहता  है की प्यार दे जाओ !!

प्रचंड पछबा में मचलने दो
पहाड़ो  पर टूटती  है सांसे तो टूटने दो
रुक जाय समय तो मुझे चलने दो
कौन कहता  है प्यार दे जाओ
बस तेरा आभास मिल जाए कौन कहता है की प्यार दे जाओ !!

नदी नाहर लाँघ आया हूँ 
सुख गए हें होठ
पर, तू कह दे तो फराक
इतिहास लिख जाऊ
कौन कहता है प्यार दे जाओ
ऐ खुदा '
बस उसे भी मेरा आभास मिल जाए !!!
                                                             मनोहर कुमार झा .


गजल

हँ हँ हम शेर केर गीदर होएत देखने छी.
हँ हँ हम मर्म के जर्म होएत देखने छी .

हँ हँ चुप -चाप माँ -बाप कुसुम सन
बेटाक बोल गर्म होएत देखने छी .

हँ हँ बोलक अक्रन में बकलोल
बापक नयन में नोर होएत देखने छी .

हँ हँ गुम गुरु सीतल सोनीत
मरचाई  नरम होएत देखने छी .

हँ हँ बेरथ चुप मनोहर आए
रिस्ताक जहर होएत देखने छी ..

                                मनोहर कुमार झा .

Thursday, October 27, 2011

शराबी और मैं (कविता)

नरम नरम घासों में
और कोमल हाथों  में
एक उद्विज और एक अनुज कहलाता है .
जुऐ के ठेके पर, जज की कुर्शी पर
कहते है अंतर होता है मुझमें
शराबी और मैं .........................
पेशे का हकीम हूँ
पैसे का मुनीम हूँ
तेरी पराजय
मेरी जय  
मांगता भीख , पर नियत में नीक है
उठते कलम पर अक्ल से छिटं  है
कहते है अंतर होता मुझमें
शराबी और मैं .....................
रिश्ते की बुनियाद बनी है
दीवारें है पर जान की कमी है
यश और अपयश दोनों  खोजते 
दीखते लाली में, सूरज की अंधियारी में
माइन पर खरा  होना चाहता हूँ
प्रबंचक और शराबी में दूरियाँ देखता हूँ  
कहते हैं अंतर होता है मुझमें
शराबी और मैं ..............................
हमारे जमात पैसे की धाक होती है
जाति और स्वार्थ की ताक होती है
तू अच्छा है तुझमें में  महफिल के शाक   होती है
हिन्दू -मुस्लिम की नहीं अपनों की नाक होती है
सच है ईंसान हूँ ,पर खाइयाँ होती है
कहते है अंतर होता है मुझमें
शराबी और मैं ..............................
(मनोहर झा) 

Tuesday, January 25, 2011

Dosto ,yah  sal vartie sahitia ke safal pradip baba naga Arjun,kedarnath agrwal,samser bahadur singh,faig ahmad faig,gopal singh nepali ageye jese sudhi bidwano ka h.en sabo ko mera namam,hal ke dib gant kanheya lal nandan ko kusam .sahtheyo aajadi ke sath sal bitne ke bad v keya bastab me aajadi aa paei h jara socheye.comen welth game se leker kalmari ,aadash ka mamla v samne h.H leken babri masjid ke fesle ko v nahi nakara ja sakta h.avi bas etna..[]