आवास (कबिता )
ना रहना था साथ मेरे तो
काहे दिखाई सपना
घोसले का
चली जाती चुप चाप
कहीं बहुत दूर
थोरा सोचती
मेरे बारे में भी
मेरे घोसले के
अंडे पर तरस खाती
ना तोरती उससे भी
मुझसे नाता
जब ओ बहार आता
जी लेते अपने घोसले
अपने उसी नबजात
के संग
बची रह जाती मेरी
लालसा
साथ होती तेरी यादें
और तेरा हिस्सा
भले अधूरा होता
मेरा ओ घोसला
पर बच जाता
हमारा सपना ,
और होती एक सुकून
उसके साथ अपने
आवास में !!
:::''' <कुसुम के लिये >
-----------------------------------------------
-----मनोहर कुमार झा
ना रहना था साथ मेरे तो
काहे दिखाई सपना
घोसले का
चली जाती चुप चाप
कहीं बहुत दूर
थोरा सोचती
मेरे बारे में भी
मेरे घोसले के
अंडे पर तरस खाती
ना तोरती उससे भी
मुझसे नाता
जब ओ बहार आता
जी लेते अपने घोसले
अपने उसी नबजात
के संग
बची रह जाती मेरी
लालसा
साथ होती तेरी यादें
और तेरा हिस्सा
भले अधूरा होता
मेरा ओ घोसला
पर बच जाता
हमारा सपना ,
और होती एक सुकून
उसके साथ अपने
आवास में !!
:::''' <कुसुम के लिये >
-----------------------------------------------
-----मनोहर कुमार झा