Wednesday, December 28, 2011

गजल

हँ हँ हम शेर केर गीदर होएत देखने छी.
हँ हँ हम मर्म के जर्म होएत देखने छी .

हँ हँ चुप -चाप माँ -बाप कुसुम सन
बेटाक बोल गर्म होएत देखने छी .

हँ हँ बोलक अक्रन में बकलोल
बापक नयन में नोर होएत देखने छी .

हँ हँ गुम गुरु सीतल सोनीत
मरचाई  नरम होएत देखने छी .

हँ हँ बेरथ चुप मनोहर आए
रिस्ताक जहर होएत देखने छी ..

                                मनोहर कुमार झा .

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