Friday, November 30, 2012


मैं कहाँ (कविता)
आशा और सुनहरे सपनों को
संजोये निकला था
कोर्थु से कोलकाता की ओर
बड़े अरमान
बड़ी आभाएँ
बिखरते चले गए
आंसू के टुकड़े
बांस के पास का घर
गाय का चारा
माँ की नमी आँखे
मैं भी नहीं चाहता था मुड़ना
क्योंकि ,
पुनः याद आती
भूखे बच्चे
तपते पैर
और एक सुर्ख सपना!
दुधिया रौशनी
चमकती सड़के
कामिनी के बोल
पर मडर होने पर नहीं खुलते दरवाजे
हिचकियों में कह जाती हज़ार सवाल
इसी लास में नजर आता हूँ
मैं भी
यौवना के होंठ का सोनित
बच्चे की कलेजी
मदिरा का 'बाथ टब'
एक हुक उठती है
कदम पीछे कर देखता हूँ
गिरने लगते हैं थूक के ओले
जरा और पीछे बढ़ता हूँ
माँ की आशक्त आँखे
पत्नी की स्वपनिल दुनिया
बच्चों का चन्द्र अभियान

पिता का दिवा स्वपन
लौट पड़ता हूँ कोलकाता
रोने को नहीं मिल रही है जमीन
दूध से सोनित तक का सफ़र
किसे कहूँ ? ----------
मैं कहाँ ?---------------''----------''
मनोहर कुमार झा
प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय
(कोलकाता) -73
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